ईदगाह में किरदार याद नहीं पर पहली एक लाइन के पीछे अकेला सबसे पीछे
खुला बदन, बदन पर लिखे नारे, जेब में कुल एक हज़ार रूपये और दिल्ली पहुँच कर प्रधानमंत्री से अपने गोरखपुर के अधूरे प्रेक्षगृह निर्माण कार्य को पूरा कराने की प्रार्थना। कई शहरो से होते हुये देश की राजधानी पहुँचा ज्ञापन दिया मुझे ये भी नहीं मालूम था कि जिस शहर में जा रहा हूँ उस शहर में किस जगह रुकुंगा। कानपुर की घटना याद है सम्भवतः नाम रणविजय सिंह जागरण में पत्रकार थे उन दिनों, पूछे कहा रहेंगे हमने कहा नहीं पता बोले मेरे कमरे पर आज रात रुक जाइये फिर जहा निकलना होगा आप सुबह निकल जाइएगा।दिल्ली में लाइव इंडिया की पत्रकार पल्ल्वी जैन से मिलना हुआ बड़े अच्छे तरिके से हमारा सहयोग किया प्रेक्षगृह पर एक बड़ी स्टोरी शूट कर दिखाया। वापस आते वक्त भी कुछ शहर हमने शामिल किये जिनमे प्रयागराज प्रमुख था जब स्टेशन से बाहर उतरे तब लोग मुझे पहचान कर बोले स्वागत है कल आपकी न्यूज़ टीवी समाचार में देखा, गोरखपुर जब पहुंचे तब दैनिक जागरण ने बहुत अच्छे ढंग से मेरे रंगान्दोलन को अगले दिन के समाचार पत्र में प्रकाशित किया और इसी घटना के बाद मेंरा संसार से मन उचट गया कुछ माह बाद नवम्बर 2008 में चुपके से घर छोड़ कर हम अयोध्या में दीक्षा लेकर ख़ुद की खोज में लग गये आगे कि ढेरो बाते पर फिर कभी। ....